उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बयान के बाद चर्चाओं में ‘अर्बन नक्सल’, चेतावनी भी दी
देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में ‘शहरी नक्सल गिरोहों’ को कड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये गिरोह जिहादी मानसिकता को बढ़ावा देकर जनकल्याणकारी योजनाओं को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह बयान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 14 अक्टूबर को देहरादून दिया। इस दौरान उन्होंने युवाओं के भविष्य की रक्षा का वादा भी किया।
सीएम धामी ने कहा, “हमारी सरकार युवाओं के भविष्य की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम कर रही है। मैं उन शहरी नक्सल गिरोहों को चेतावनी देता हूं जो राज्य में जिहादी मानसिकता को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं और हमारी सरकार के जनकल्याणकारी फैसलों के खिलाफ साजिश रच रहे हैं।
उत्तराखंड में इनकी मंशा कामयाब नहीं होने दी जाएगी। यह बयान हाल ही में हरिद्वार में परीक्षा पेपर लीक की घटना के संदर्भ में आया है, जहां सरकार ने त्वरित कार्रवाई की थी। इससे पहले, सीएम ने ‘नकल जिहाद’ का जिक्र करते हुए नकल माफियाओं को कुचलने की बात कही थी
विपक्ष ने इस बयान की आलोचना की है और इसे असहमति को दबाने का बहाना बताया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि ‘अर्बन नक्सल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। हालांकि, भाजपा समर्थक इसे राज्य की सुरक्षा और स्थिरता से जोड़कर देखते हैं।
‘अर्बन नक्सल’ क्या है?
‘अर्बन नक्सल’ एक विवादास्पद शब्द है, जो मुख्य रूप से भारत के राजनीतिक संदर्भ में इस्तेमाल होता है। यह उन शहरी बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों, प्रोफेसरों या एनजीओ सदस्यों को संदर्भित करता है, जिन्हें नक्सली (माओवादी या वामपंथी उग्रवादी) विचारधारा का अप्रत्यक्ष समर्थक माना जाता है। इन पर आरोप लगता है कि ये लोग ग्रामीण नक्सलियों को प्रचार, कानूनी सहायता या वैचारिक समर्थन देकर राज्य विरोधी गतिविधियों में मदद करते हैं।
यह शब्द फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री के 2017 के स्वराज्य मैगजीन लेख से लोकप्रिय हुआ, जहां इसे ‘भारत के अदृश्य दुश्मन’ कहा गया। उनकी 2018 की किताब Urban Naxals: The Making of Buddha in a Traffic Jam और 2016 की फिल्म Buddha in a Traffic Jam ने इसे मुख्यधारा में लाया। 2018 के बाद, भाजपा और दक्षिणपंथी समूहों ने इसे अपनाया। महाराष्ट्र के एलगार परिषद मामले में कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और वरवर राव जैसे लोगों को ‘अर्बन नक्सल’ कहा गया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच की। इतिहासकार रोमिला थापर ने इसे अस्पष्ट और सामाजिक न्याय के लिए काम करने वालों को बदनाम करने का माध्यम बताया।
2024 में महाराष्ट्र सरकार ने ‘महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सेफ्टी बिल’ पेश किया, जो ऐसे तत्वों को लक्षित करता है। आलोचक इसे राजनीतिक हथियार मानते हैं, जो मानवाधिकार, पर्यावरण आंदोलनों या असहमति को दबाने के लिए इस्तेमाल होता है। भारत में नक्सलवाद UAPA (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट) के तहत प्रतिबंधित है, लेकिन ‘अर्बन नक्सल’ की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है।
उत्तराखंड में यह मुद्दा लैंड जिहाद, नकल जिहाद विरोध प्रदर्शनों और हालिया घटनाओं से जुड़कर चर्चा में है। सरकार का दावा है कि ये तत्व राज्य को अस्थिर करने की साजिश रच रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक दबाव का हिस्सा बताता है।