गैरसैंण को लेकर फिर गरमाई बहस : हाईकोर्ट के जस्टिस राकेश थपलियाल ने दी तीखी प्रतिक्रिया, जनता को गुमराह करना नेताओं की आदत बन गई है…

देहरादून। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। इस बार मामला राजनीतिक मंच या आंदोलनकारियों के नारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसकी गूंज उत्तराखंड उच्च न्यायालय तक पहुंच गई है। राज्य के माननीय न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने गैरसैंण को लेकर राज्य सरकार और नेताओं की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि सालों से गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के नाम पर जनता को सिर्फ गुमराह किया जा रहा हैऔर अब समय आ गया है कि जनता इस धोखे को समझे और जवाब मांगे।

हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बयान दिया था कि “2027 के चुनाव में हमें जिताओ, हम गैरसैंण को राजधानी बनाएंगे।” ऐसा पहली बार नहीं है, कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी वर्षों से ऐसे ही वादे दोहराती रही है। लेकिन, जब-जब ये दल सत्ता में आए, गैरसैंण का मुद्दा फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसी राजनीतिक रवैये पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए तीखी टिप्पणी की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जनता को बार-बार गुमराह किया जाना अब एक आदत बन गई है और ये सिलसिला अब बंद होना चाहिए।

न्यायमूर्ति थपलियाल ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि 2027 में हमें जीताओ और हम गैरसैंण को राजधानी बनाकर दिखाएंगे, ये नारा सुन-सुनकर जनता थक चुकी है। उत्तराखंड की जनता को बेवकूफ बनाना अब आदत बन गई है। जब चाहे नेताओं द्वारा जनता को गुमराह किया जाता है। पेपरों में झूठे वादे और भ्रामक खबरें दी जाती हैं।

उन्होंने आगे कहा कि गैरसैंण में 8000 करोड़ रुपये की सरकारी संपत्तियां और मजबूत बुनियादी ढांचा पहले से मौजूद है। कोई भी व्यक्ति जाकर देख सकता है कि वहां कितनी सुविधाएं खड़ी की जा चुकी हैं। नेताओं को सिर्फ अपना अटैची उठाकर वहां जाना है। अगर गैरसैंण को ही राजधानी बनाया गया होता, तो आज उत्तराखंड की तस्वीर ही कुछ और होती। गांव-गांव में अस्पताल होते, स्कूल होते, बिजली-पानी की सुविधाएं होतीं। लेकिन सारा विकास सिर्फ देहरादून तक सिमटकर रह गया है।

गैरसैंण में प्रस्तावित विधानसभा सत्र को लेकर भी न्यायमूर्ति थपलियाल ने कड़ा रुख अपनाया। आप गैरसैंण में जो विधानसभा सत्र करने जा रहे हैं, हम उसे रोक सकते हैं। जब तक ठोस नीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखती, तब तक यह सब दिखावा है। न्यायमूर्ति ने अपने बयान में जनता से भी अपील की कि अब वक्त आ गया है कि जनता सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं, सड़कों पर उतरकर अपने हक के लिए आवाज उठाए। ताकि भविष्य की पीढ़ी एक जवाबदेह और संतुलित उत्तराखंड देख सके।

उत्तराखंड राज्य के गठन को 24 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक स्थायी राजधानी को लेकर स्पष्टता नहीं है। हर सरकार ने गैरसैंण को लेकर वादे किए, घोषणाएं कीं, लेकिन आज तक यह मुद्दा राजनीतिक हथियार भर बना रहा। हाईकोर्ट की इस टिप्पणी ने न केवल सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि आम जनमानस को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कब तक गैरसैंण वादों में ही सिमटा रहेगा?

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