राजनीति में वंशवाद: देश में राजनीतिक परिवारों से हैं 21% सांसद, विधायक और MLC

नई दिल्ली: एक नए विश्लेषण के अनुसार, भारत में अभी भी वंशवाद की राजनीति गहरी जड़ें जमाए हुए है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के मौजूदा 5204 सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) में से 1107 (21%) का संबंध राजनीतिक परिवारों से है। यह प्रवृत्ति स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही है और पार्टी स्थिरता, ऐतिहासिक नेतृत्व तथा मतदाताओं की नाम-परिचितता पर टिकी हुई है। हालांकि, यह योग्यता, जवाबदेही और समान प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़े करती है।

रिपोर्ट में वंशवादी राजनीति को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह वह प्रथा है जहां राजनीतिक शक्ति परिवारों में केंद्रित रहती है। परिवार के सदस्य निर्वाचित पदों या प्रभावशाली भूमिकाओं पर काबिज होते हैं, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सत्ता का हस्तांतरण होता है। इसके लिए पारिवारिक नाम, धन और नेटवर्क का फायदा उठाया जाता है। ADR ने यह विश्लेषण चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों, ऐतिहासिक अभिलेखों, मीडिया रिपोर्टों और सार्वजनिक जानकारी पर आधारित किया है। वंशवादी माने जाने के लिए, सदस्य के परिवार (माता-पिता, भाई-बहन, पति/पत्नी, बच्चे या रिश्तेदार) में कोई पूर्व या वर्तमान निर्वाचित अधिकारी या पार्टी नेता होना चाहिए। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि यह पूर्ण अध्ययन नहीं है, क्योंकि कई वंशवादी राजनेता चुनाव हारकर भी सक्रिय हैं या सरकारी भूमिकाओं में हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद का पैटर्न

रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में वंशवाद सबसे अधिक (31%) है, जबकि राज्य विधानसभाओं में सबसे कम (20%)। नीचे दी गई तालिका में विधानमंडल के प्रकार के अनुसार आंकड़े दिए गए हैं:

 
विधानमंडल का प्रकार कुल सदस्य वंशवादी सदस्य वंशवादी प्रतिशत (%)
राज्य विधानसभा (विधायक) 4,091 816 20
लोकसभा (सांसद) 543 167 31
राज्यसभा (सांसद) 224 47 21
राज्य विधान परिषद (एमएलसी) 346 77 22
कुल 5,204 1,107 21

पार्टीवार विश्लेषण: राष्ट्रीय दल

पार्टी विश्लेषण किए गए सदस्य वंशवादी पृष्ठभूमि वाले सदस्य वंशवादी %
कांग्रेस 32%
भाजपा 18%
माकपा 8%
अन्य 20%

राज्यवार स्थिति: आंध्र प्रदेश टॉप पर

राज्यों में वंशवाद की दर अलग-अलग है। कुल संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जहां 604 सदस्यों में से 141 (23%) वंशवादी हैं। महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है, जहां 403 में से 129 (32%)। बिहार में 360 में से 96 (27%) और कर्नाटक में 326 में से 94 (29%)। अनुपात के हिसाब से आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां 255 में से 86 (34%) वंशवादी हैं। क्षेत्रीय पैटर्न में उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश: 23%, राजस्थान: 18%) और दक्षिण भारत (कर्नाटक: 29%, आंध्र प्रदेश: 34%) में उच्च दर है। पूर्व/पूर्वोत्तर में बिहार (27%) ऊंचा है, लेकिन असम (9%) कम।

पार्टीवार वंशवाद: कांग्रेस में सबसे अधिक

राष्ट्रीय दलों में 3,214 सदस्यों में से 657 (20%) वंशवादी हैं। कांग्रेस में यह दर 32% है, भाजपा में 18% और माकपा में मात्र 8%। राज्य स्तरीय दलों में 1,809 में से 406 (22%) वंशवादी हैं। एनसीपी-शरदचंद्र पवार और जेकेएनसी में 42%, वाईएसआरसीपी में 38%, टीडीपी में 36%। वहीं एआईटीसी (10%) और एआईएडीएमके (4%) में कम। गैर-मान्यता प्राप्त दलों में 87 में से 21 (24%) और स्वतंत्रों में 94 में से 23 (24%) वंशवादी हैं। नौ छोटे दलों में सभी सदस्य वंशवादी हैं।

लिंग के आधार पर असमानता: महिलाओं में दोगुना वंशवाद

रिपोर्ट में लैंगिक असमानता पर जोर दिया गया है। कुल 4,665 पुरुष सदस्यों में से 856 (18%) वंशवादी हैं, जबकि 539 महिलाओं में से 251 (47%)। यानी महिलाओं में वंशवाद की दर पुरुषों से दोगुनी से अधिक है। राज्यवार देखें तो महाराष्ट्र (महिला: 69%, पुरुष: 28%), आंध्र प्रदेश (69% vs 29%), बिहार (57% vs 22%) और तेलंगाना (64% vs 21%) में महिलाओं में उच्च दर है। गोवा, पुडुचेरी और दादरा नगर हवेली में 100% महिलाएं वंशवादी हैं। सबसे अधिक वंशवादी महिलाएं उत्तर प्रदेश (29), महाराष्ट्र (27), बिहार (25) और आंध्र प्रदेश (20) में हैं।

पार्टीवार भी यही ट्रेंड: कांग्रेस (महिला: 53%, पुरुष: 29%), भाजपा (41% vs 15%)। एनसीपी, असम गण परिषद आदि में 100% महिलाएं वंशवादी हैं। रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं का राजनीतिक प्रवेश पारिवारिक नेटवर्क पर ज्यादा निर्भर है, जो पहली पीढ़ी की महिलाओं के लिए बाधा बनता है। कुल मिलाकर महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 10% है, लेकिन उनमें वंशवाद अधिक।

वंशवाद के कारण और प्रभाव

रिपोर्ट में वंशवाद के कारणों पर चर्चा की गई है: मजबूत पारिवारिक परंपराएं, पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी, टिकट वितरण में भेदभाव, चुनावों में धन-बाहुबल का बोलबाला और मतदाताओं की ‘जीतने की क्षमता’ पर फोकस। दलबदल विरोधी कानून भी कभी-कभी वफादारी को मजबूत करता है। वंशवाद समाज को जन्म-आधारित वर्ग में बांटता है, समान अवसरों को प्रभावित करता है और पार्टियों को कमजोर करता है।

हालांकि, कैडर-आधारित पार्टियां (जैसे माकपा, आप, टीएमसी) में वंशवाद कम है। लोकसभा में उच्च दर (31%) दर्शाती है कि राष्ट्रीय स्तर पर परिवारों का कड़ा नियंत्रण है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वंशवाद राजनीतिक प्रवेश का तंत्र बन गया है, जो लोकतंत्र की बुनियाद को चुनौती देता है। ADR ने पार्टियों में पारदर्शिता और RTI के दायरे में लाने की मांग की है। यह रिपोर्ट भारतीय राजनीति में सुधार की जरूरत पर रोशनी डालती है, जहां वंशवाद स्थिरता देता है लेकिन न्याय को प्रभावित करता है।

 

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