सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के इन प्रावधानों पर लगाई रोक
नई दिल्ली। संसद के बजट सत्र में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद लागू कर दिया गया था, लेकिन इसके कई प्रावधानों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की गईं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली दो जजों की बेंच ने कानून को रद्द करने से तो इनकार किया, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा, जबकि केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद रहे। कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड और परिषद की संरचना से जुड़े नियमों में संतुलन आवश्यक है।
कोर्ट का फैसला
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सदस्यता की शर्तें: अधिनियम में प्रावधान था कि केवल पाँच साल से अधिक समय से इस्लाम धर्म का पालन करने वाले ही वक्फ बोर्ड के सदस्य बन सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त को फिलहाल स्थगित कर दिया है। जब तक राज्य सरकारें उचित नियम नहीं बनातीं, यह लागू नहीं होगा।
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गैर-मुस्लिमों की संख्या: संशोधित कानून में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान था। अदालत ने स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में अधिकतम तीन और केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार गैर-मुस्लिम सदस्य ही हो सकते हैं। साथ ही, जहाँ संभव हो, बोर्ड का सीईओ मुस्लिम सदस्य ही बनाया जाए।
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कलेक्टर के अधिकार: अधिनियम में जिला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया था कि वे यह तय करें कि जिस संपत्ति पर वक्फ का दावा है, वह सरकारी है या निजी। अदालत ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा कि नागरिकों के निजी अधिकारों पर निर्णय लेने का अधिकार कलेक्टर को देना ‘शक्तियों के पृथक्करण’ के सिद्धांत के विरुद्ध है।
गौरतलब है कि यह अधिनियम अप्रैल 2025 में संसद से पास हुआ था। लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 232 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया था। इसके बाद 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दी थी। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून तो प्रभावी रहेगा, लेकिन उसके कुछ विवादित प्रावधान फिलहाल लागू नहीं होंगे।