उत्तराखंड : नेताओं की देहरादून-टू-दिल्ली दौड़ और धन सिंह की मुलाकातें, क्या कहती हैं?

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

राजनीतिक लिहाज से अब उत्तराखंड और दिल्ली का रिश्ता कुछ ऐसा हो चला है कि जब भी राज्य का कोई नेता या मंत्री दिल्ली जाता है, राज्य के लोगों की धड़कनें तेज होने लगती हैं। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की। दोनों की सरकारों में गुटबाजी हमेशा से रही है और इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता है। नेताओं की देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़ हमेशा हेडलाइन बनती है।

देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़

आखिर ऐसा कया है कि देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़ चाहे किसी भी राजनीतक दल का नेता या मंत्री अपनी सरकारों के दौर में लगाए, उसकी चर्चा हर बार इस रूप में होती है कि कुछ तो गड़बड़ है? कुछ तो होने वाला है? ये बातें सच भी साबित होती रही हैं। देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़ जब भी नेताओं ने गुटबाजी के कारण लगाई, सरकारों में बदलाव भी देखने को मिले हैं। फिर चाहे सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की।

कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत की सबसे ज्यादा चर्चा 

अब हम ताजा देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़ की चर्चा करते हैं। पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री हों या फिर भाजपा के कुछ दूसरे नेता और मंत्री दिल्ली  की दौड़ लगाते रहे हैं। इन दौड़ों में सबसे ज्यादा बातें कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत की दिल्ली दौड़ और मुलाकातों को लेकर है। वैसे यह पहली बार नहीं है, जब धन सिंह रावत चर्चा में हों।

मुख्यमंत्री पद का मजबूत चेहरा

भाजपा सरकार गठन के वक्त हमेशा ही धन सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद का मजबूत चेहरा माना जाता रहा है। यह बात अलग है कि वो कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच नहीं पाए। उन्होंने दौड़ लगाई भी और कुर्सी तक पहुंचने के लिए जोर भी खूब लगाया, लेकिन बाजी हर बार हाथ से फिसलती चली गई।

देहरादून-टू-दिल्ली दौड़ और धन सिंह की मुलाकातें

इस तस्वीर के बाद चर्चा शुरू हो गई

धन सिंह रावत देहरादून-टू-दिल्ली की दौड़ के दौरान दिल्ली में सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। उन्होंने जैसे तस्वीरें सोशल मीडिया में शेयर भी कीं। यहां तक सबकुछ सामान्य लग रहा था। ज्यादा चर्चा भी नहीं थी। लेकिन, इसके बाद धन सिंह रावत की एक और तस्वीर सहकारिता मंत्री अमित शाह के साथ सामने आई। इस तस्वीर के बाद चर्चा शुरू हो गई कि कुछ तो चल रहा है। चल क्या रहा है यह किसी को फिलहाल पता नहीं है?

तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं

उसके बाद धन सिंह रावत देहरादून लौटे और तत्काल राज्यपाल से मिलने जा पहुंचे। इसकी तस्वीरें भी उन्होंने सोशल मीडिया में शेयर की। इनके सामने आने के बाद चर्चाओं ने और जोर पकड़ लिया। राजनीतिक जानकार और प़त्रकारों की इन तस्वीरों और मुलाकातों पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।

दो सीटों पर हुए उप चुनाव का परिणाम 

दरअसल, इन मुलाकातों को लेकर चर्चा और सुगबुगाहट इसलिए भी है कि हाल ही में दो सीटों पर हुए उप चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। अब एक और उप चुनाव केदारनाथ सीट पर भाजपा के सामने है। सूत्रों की मानें तो यहां भी भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। सरकार से नाराजगी साफ नजर आ रही है।

एकला चलो की राह

एक और बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एकला चलो की नीति पर चल पड़े हैं। एकला चलो की इसी राह पर त्रिवेंद्र सिंह रावत और कांग्रेस सरकार में हरीश रावत भी निकले थे और दोनों को अपनी कुर्सियां गंवानी पड़ी थी। ब्रांडिंग के दौर में पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड के बड़े नेता के तौर बिल्ड किया जा रहा है। भाजपा नेताओं को उनकी यह ब्रांड बिल्डिंग भी पसंद नहीं आ रही है।

सबसे बड़े नेता

वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने मीडिया को एक बयान दिया। उनका मानना है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यह साबित करना चाहते हैं कि वही कुमाऊं और उत्तराखंड के सबसे बड़े नेता हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि सरकार से आम जनता तो दूर उनके कैबिनेट मंत्री भी खुश नहीं हैं। प्रदेश को माफिया के हाथ सौंप दिया गया है। मंत्रियों को कोई पूछ नहीं रहा है। कांग्रेस ने गढ़वाल और कुमाऊं वाद का भी आरोप लगाया है।

कांग्रेस केवल बांटने का काम करती है

वहीं, भाजपा का कहना है कि कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है। कांग्रेस केवल बांटने का काम करती है। गढ़वाल-कुमाऊं की बात कहकर सरकार को अस्थिर करने की बातें कर रही है। भाजपा का कहना है कि हमारे मंत्री दिल्ली में राज्य की बेहतरी के लिए केंद्रीय मंत्रियों से मिलते हैं। राज्य का विकास भाजपा की प्राथमिकता है।

फिलहाल बयानी तीर चलाए जा रहे हैं

यह चर्चाओं की बातें हैं। हकीकत क्या है? वह भी जल्द सामने आ जाएगा। कहते हैं कि तस्वीरें बोलती हैं। अब यह तस्वीरें क्या बोल रही हैं। इनके लिए इंतजार करना होगा। देहरादून-टू-दिल्ली दौड़ की तस्वीरों पर फिलहाल बयानी तीर चलाए जा रहे हैं। यही बयान और यही तीर गुटबाजी को हवा देने का काम करते हैं। इन हवाओं का रुख किस और मुड़ता है, इसे फिलहाल वक्त पर छोड़ देते हैं।

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